tag:blogger.com,1999:blog-3506891854453526851.post354887260316007517..comments2023-05-26T07:26:30.338-07:00Comments on तिश्नगी: दिशाहीन युवाअखिलेश चंद्रhttp://www.blogger.com/profile/09848906103236569590noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3506891854453526851.post-75437291089341660672011-05-27T06:52:13.775-07:002011-05-27T06:52:13.775-07:00इस लेख के लिए शब्द "सर्वोत्तम" शब्द भी ...इस लेख के लिए शब्द "सर्वोत्तम" शब्द भी फीका है. काफी सारगर्भित और सत्य को सीधे सीधे बिना लाग लपेट के व्यक्त करता हुआ आलेख है.<br /><br />रही बात लेख के अंत में उठाये गए प्रश्न का उत्तर, वह जितना साधारण है उतना ही रहस्यमयी भी. हुड़दंग मचाकर "भारत माता की जय" बोलने से देश भक्ति झलकती है वाली मानसिकता के लिए अंग्रेजों द्वारा बनाई गई व्यवस्था जिम्मेदार है, जो आजादी के बाद और भी तेजी से अमल में लाई जा रही है. हम सामाजिक मूल्यों को ताक पर रखकर केवल पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण करने को ही शिक्षा समझने लगे हैं. हमने अपनी हर चीज़ को पुराना, घिसा पिटा, आउटडेटेड समझ कर उनसे किनारा करना शुरू कर दिया. इस चक्कर में हम अपने सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों की धरोहर को नहीं बचा पाए. इस तरह पटाखे फोड़कर, गाड़ियों में चक्कर लगाकर, हुड़दंग करके "सेलेब्रेशन" करनेवालों का हुजूम "पढ़े लिखे मूर्खों" का समूह "इंडिया" का एक भाग है. असली देश तो "भारत" है जिसके ८०-८५ करोड़ लोगों को तो यह पता तक नहीं कि हमारे देश को "इंडिया" के नाम से विदेशी जानते हैं. जीत को दर्शाने के लिए दो उँगलियों को फैलाकर "वी" बनाने वाले इंडिया के लोग यह नहीं जानते कि वे "भारत" में रहते हैं जिसको ये "इंडिया" कह रहे है. और इस भारत में "वी" की तरह उंगली दिखाने का अर्थ "तेरी दोनों आँखें फोड़ डालूँगा" भी लगाया जा सकता है और इस क्रम में दोनों टांगें गंवानी पड़ सकती हैं.<br /><br />वस्तुतः, हम "जम्बूद्वीपे भारत खंडे" के रहनेवाले लोग हैं और हमारे अपने तौर तरीके हैं. ये तो अंग्रेजों क़ी सोची समझी चाल के तहत आज भी भारत को इंडिया में बदलने कि पुरजोर कोशिश चल रही है. हमारे अस्तित्व को नकारने का, या फिर उसे चिढाकर हीन बताने का अभियान जोर शोर से चल रहा है. उसी क्रम में "क्रिकेट" को इस देश का "रिलिजन" घोषित कर दिया जाता है. इस देश के प्रधानमंत्री, महारानी और राजकुमार को इसी के माध्यम से विदेश नीति के तिकड़म बैठाना सूझता है. जरा सोचिये, १२० करोड़ लोगों के देश के प्रधानमन्त्री के पास इतना समय कहाँ बचना चाहिए क़ि वह दिनभर क्रिकेट देखते बैठे? और मजे की बात, राम मिलाये जोड़ी एक अँधा एक कोढ़ी. हमारा पडोसी देश का प्रधानमंत्री भी इन्हीं का जोड़ीदार निकला. यह सब देख कर जनता का दिमाग फिरना स्वाभाविक ही है. यही जश्न और माहौल किसी और खेल के लिए क्यों नहीं देखने को मिलता? तब हमारी मीडिया कहाँ सो रही होती है? हमारे इन तथाकथित खेलप्रेमियों से अगर भारत के राष्ट्रीय खेल का नाम पूछ लो तो तारे गिनने लगेंगे.Rakesh Chandrahttps://www.blogger.com/profile/13493165133994210847noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3506891854453526851.post-52652958363195308152011-04-30T11:11:57.439-07:002011-04-30T11:11:57.439-07:00देश के युवाओं की हालत को लेकर नपेतुले शब्दों में त...देश के युवाओं की हालत को लेकर नपेतुले शब्दों में तुमने बहुत कुछ कह डाला। किसी शायर ने कहा है 'तेरे पांव तले जमीं नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीं नहीं।' हमारा झुकाव किस ओर है, शायद इसका अंदाजा लगते-लगते बहुत देर हो चुकेगी।Bhimsenhttps://www.blogger.com/profile/03559815509318378335noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3506891854453526851.post-46162945230382276132011-04-29T10:49:36.546-07:002011-04-29T10:49:36.546-07:00भाई साहब....छा गये,,,,....भाई साहब....छा गये,,,,....Anonymousnoreply@blogger.com