tag:blogger.com,1999:blog-3506891854453526851.post4489063251561356261..comments2023-05-26T07:26:30.338-07:00Comments on तिश्नगी: 'खेल-प्रेमी' की दुविधाअखिलेश चंद्रhttp://www.blogger.com/profile/09848906103236569590noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3506891854453526851.post-52788121514955051942010-06-24T03:03:03.897-07:002010-06-24T03:03:03.897-07:00भाई अखिलेश तुम ए आर रहमान के दीवाने को गुलजार और ओ...भाई अखिलेश तुम ए आर रहमान के दीवाने को गुलजार और ओपी नय्यर के साथ हो लेने को कह रहे हो। पेप्सी पीने वालों को लस्सी की आदत डालने के लिए कह रहे हो। तुम्हारे भेजे में दीमक लग गई है क्या। मुझे तुम्हारी समझ पर तरस आ रहा है। कहां आर्टिफिशियल क्रिकेट और कहां कुदरती फुटबॉल- तुम इन दोनों की तुलना करके क्रिकेट का कद ऊंचा कर रहे हो या फिर फुटबॉल का स्तर गिरा रहे हो, यह शोध का रोचक विषय हो सकता है। रही बात विभिन्न खेलों के भगवान और गेंद के छोटा-बड़ा होने की बात तो बाजार के इस दौर में सब कुछ प्रबंधन की दक्षता पर निर्भर करता है, अपने-आप में इन चीजों की कोई अहमियत नहीं होती। भरोसा न हो तो ललित मोदी को फीफा का अध्यक्ष बनवा दो, वह क्रिकेट के गेंद से फुटबॉल का आयोजन कराने से बाज नहीं आएगा और बेचारे सचिन को डिफेंडर बनने पर मजबूर कर देगा। वाकई तुमने खेलों की दुनिया और उसके प्रशंसकों की भद पिटवाई है। भीमBhimsenhttps://www.blogger.com/profile/03559815509318378335noreply@blogger.com