घर से आईआईएमसी में पढ़ने का सपना लेकर दिल्ली आया था. लेकिन दो बार इंटरव्यू में जाकर रह गया. बड़ा बुरा लगा था. थोड़े दिनों के लिए यह भी लगा था कि अब पत्रकार नहीं बन पाऊंगा. इसी बीच दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैम्पस में प्रवेश मिल गया. और एक सपना पूरा हो गया! लेकिन यह राह आसान नहीं थी. प्रवेश पाने के पहले पत्रकारिता के बारे में अन्दर तक नहीं जानता था. मैं बिल्कुल अनजान था. दूर-दूर तक इस पेशे में मेरा कोई अपना नहीं है.
आईआईएमसी में नहीं पढ़ पाने का दुःख मुझे हमेशा रहा है. लेकिन वहीं से पढ़ा मेरा मित्र मेरी मदद करने में कभी पीछे नहीं हटा. अब तक कि दोनों नौकरियों में उसकी भूमिका को भूला नहीं जा सकता. न हम बचपन के मित्र हैं और न ही एक जाति के. हमारी मुलाक़ात आईआईएमसी में ही इंटरव्यू के दौरान हुई थी. दो अलग-अलग संस्थानों में पढने के बाद भी मित्रता बनी रही. हम दोनों आजकल एक ही अखबार के लिए काम करते हैं.
इसी मित्र की जिद पर हाल ही में आईआईएमसी के पूर्व छात्रों के मिलन समारोह में गया था.वहीं एक मजेदार वाकया हो गया. सारे पूर्व छात्रों का स्वागत मेन गेट पर आनंद प्रधान सर कर रहे थे. मुझे लगता है कि प्रधान सर मेरा नाम भले ही भूल गए हों, लेकिन उन्होंने मुझे चेहरे से ज़रूर पहचान लिया होगा. मुझे बड़ी शर्मिन्दगी महसूस हुई. अन्दर ही अन्दर मैं शर्म से पानी-पानी हुआ जा रहा था. लेकिन सर ने उसी चिर-परिचित मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया जैसा वे और लोगों का कर रहे थे. बस उस एक पल के लिए लगा कि मैं भी यहीं का पूर्व छात्र हूँ! समारोह के दौरान भी एक-दो बार हम टकराए. मैं जब तक वहां रहा उनसे बचने कि कोशिश करता रहा. आज भी जब उस दिन को याद करता हूँ तो झेंप जाता हूँ.
वैसे आईआईएमसी वाला वाकया मजेदार है लेकिन बात से असहमति है मुझे नहीं लगता कि अच्छा मित्र होने के के लिए बचपन का साथ या एकजाति का होनेा आवश्यक है ब्लाग जगत में आपका स्वागत है वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी
ReplyDeletesahi kaha bhai sahab
ReplyDeletekya baat hai
ReplyDeleteवक्त के इतने थपेड़े खाने के बाद भी अगर आपकी सोच में कोई बदलाव नहीं आया ,,, तो मुझे हैरत के साथ दुःख भी हुआ ,,, वो वाकया अब याद आ रहा है ,,, जब तुम एलुमिनी के ज्व़ान्ट सेक्रेटरी बनने के बाद चुपके-चुपके आईआईएमसी का फार्म भरने गए थे,,,थोड़े से व्यवस्थित संसाधनों की बात छोड़ दे तो मैं दिल्ली विश्वविद्यालय को कहीं से भी आईआईएम सी से कम नहीं समझता ,,,,, रही बात नौकरी की तो यही एकमात्र पैमाना नहीं है .. क्योंकि हम तो उनमें से हैं जो आज भी इस बात पर यकीन नहीं करते कि पत्रकार बनाए जाते हैं ,,, अब जाति वाली बात पे क्या कहूं ,,, तुम्हारी आदत गई नहीं,,,,और हां ब्लाग की दुनिया में स्वागत है ,,,,,,,
ReplyDeleteतुम्हारी आपत्ति किस बात से है? मैं समझ नहीं पाया. तुम्हें अपनी आपत्ति दर्ज कराने का पूरा हक है. लेकिन तुम्हें स्पष्ट करना चाहिए की तुम कहना क्या चाहते हो.
ReplyDeletemai kahna ye chahta hun ki naukari unhe bhi mili jinke iimc me koi mitra nahi the.
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