Sunday, March 8, 2009

कितने अनोखे रंग- अंतिम

ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ी त्योहारों से बेरुखी बढ़ती गई। इसका एक कारण घर से दूरी भी हो सकती है। लेकिन घर पर भी जब रहा तो पहले वाला उत्साह कहीं गायब हो गया। वो उमंग नहीं रहा। न लोगों से मिलने जुलने में न ही रंग-गुलाल लगाने में। शायद आसपास के लोगों के अंदर के चेहरे को पहचानने लगा था। झूठी हंसी और अपनापन सब जसे शीशे में उतर आया हो।

कभी त्योहारों का इंतजार करते-करते वक्त बीतता था। अब होली या दीपावली आसपास के लोगों को देखने के बाद ही इनका पता चलता है। मुहल्ले वालों के शोर और पकवानों की खुशबू ही त्योहारों के हमारे प्रतीक बनकर रह गए हैं। सबकुछ जसे पीछे छूट गया। रंग-गुलाल, पिचकारी, शरारत और पकवान! पहली बार जब होली के दिन मैं घर से बाहर था तो रोना आ गया था। धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। साल दर साल एक ही चीज होने से आदत सी पड़ गई है। अब तो कुछ असर ही नहीं पड़ता। 365 दिन एक जसे लगते हैं। किसी खास दिन का इंतजार नहीं रहता। कितने क्रूर हो जाते हैं हम। उम्र बढ़ने के साथ-साथ। क्यों होता है ऐसा?

लाख कोशिशों के बाद इसका उत्तर नहीं मिला। आखिर पूछता भी किससे मैं इसके बारे में। सब तो झूठे हैं। झूठी हंसी लिए फिरते रहते हैं कि कोई भी धोखा खा जाए। दूर से देखकर पहचान करना मुश्किल ही नहीं असंभव। लेकिन नजदीक आने पर सब पता चल जाता है। कुछ भी छुप नहीं सकता। चाहे कोई लाख कोशिश कर ले। अंदर कितना भी गहरा राज हो चेहरे पर नुमायां हो ही जाता है। चाहे अनचाहे। अब सोचता हूं परखने की समझ आना भी बेकार ही था।

कभी-कभी सोचता हूं बच्चे बना रहना ही ठीक था। कुछ भी पता नहीं चलता था। न कुछ देखता था न देखने की ख्वाहिश ही थी। एक छोटी-सी दुनिया थी उसी में मस्त थे। दुनिया के किसी रंग की पहचान नहीं थी। बड़ी खूबसूरत थी वो जिंदगानी। अब चाह कर भी बीते दिन नहीं लौट सकते। सिर्फ उसकी यादें जेहन में रची-बसी हैं। और वे हमेशा रहेंगी। एक सुखद सपने की तरह। बचपन के मित्रों से पुरानी यादों को बांटकर थोड़ी देर के लिए ही सही बच्चा बन जाना ही एक विकल्प बचा है। बस इसे ही पाकर खुश हो लिया जाए। और उसकी रंग-बिरंगे पल को महसूस कर लिया जाए। कहीं ऐसा न हो कि ये यादें भी साथ छोड़ दें और कुछ न बचे!

1 comment:

  1. sahi kaha hai aapne..umra badhne ke sath pehchan bhi to badh jati hai aur jyada janne wala hi isi duvidha mein jeeta hai aur sach bhi yahi hai.
    isliye achcha hai kuch palon ke liye hi sahi jhoothi zindagi ko ji lein kyunki apne andar jo bachcha hai use kabhi nhi marne dena chahiye.

    ReplyDelete