Sunday, March 27, 2011

शादी के बाज़ार में

कई बार मुझे लगता है कि नौकरी मिलने के बाद जिंदगी का एक चैप्टर बंद तो होता है, लेकिन दूसरा शुरू भी हो जाता है। एक व्यक्ति को कई नई चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है। इसी में से एक है- शादी। शादी करने से पहले लड़का-लड़की की हालत एग्जाम देने जा रहे किसी स्टूडेंट की तरह रहती है। चाहे कितनी भी तैयारी हो उसे यह नहीं लगता कि पेपर अच्छे से कर पाएगा या खूब नंबर ला पाएगा। हमारे यहां शादियों में अगुआ (ऐसा व्यक्ति जो वर और वधू दोनों पक्षों को जानता है और शादी का प्रस्ताव लेकर सबसे पहले वही आता है) की अहम भूमिका रहती है।

समय के साथ-साथ शादियों में नए-नए अगुओं का चलन आ गया है। संचार क्रांति के युग में मैट्रिमनी साइट को किसी भी मायने में कमजोर अगुआ नहीं माना जा सकता। ऐसे ही एक दिन नेट सर्फिंग करते-करते मैं मैट्रिमनी साइट पर जा पहुंचा। इससे पहले तक मैं शादियों में सिर्फ लड़कों की पसंद के बारे में ही जानता था। लेकिन इस साइट पर मुझे लड़कियां कहीं से भी लड़कों से उन्नीस नहीं दिखीं। लड़कों की उम्र, कद-काठी से लेकर इनकम वगैरह की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट थी। एक दो उदारवादी प्रोफाइल को छोड़ अधिकतर को मोटी तनख्वाह कमाने वाले पति की तलाश थी। पढ़ाई कर रही लड़की और उनके पैरंट्स ही प्रोफाइल से थोड़े उदार दिखे। जॉब कर रही लड़कियों को अपने से 3-4 गुनी अधिक सैलरी पाने वाला लड़का चाहिए था। हालांकि, लड़कों के पेशे के बारे में दोनों ही वर्गों के विचार एक जैसे थे।

लड़कियों और उनके परिवार वालों के पसंदीदा पेशे थे -आईएफएस/आईएएस/आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर, लेक्चरर, सीए, सीएस, एमबीए/बीबीए, बैंक पीओ/क्लर्क और सॉफ्टवेयर इंजीनियर। मैंने सैकड़ों लड़कियों के प्रोफाइल देखे। लेकिन किसी ने भी अपने पसंदीदा पेशे में जर्नलिज्म को शामिल नहीं किया था। अपने पेशे को फेवरिट न जानकर थोड़ा आश्चर्य हुआ। मुझे करीब 5 साल पहले का वह वाकया याद आ गया, जब मैंने घर में बताया था कि मैं पत्रकार बनना चाहता हूं। मेरे घर वालों को इस क्षेत्र में करियर नजर नहीं आ रहा था। हालांकि, उन्होंने इसका जोरदार विरोध नहीं किया। घर वालों ने इस पेशे के प्रति सिर्फ अपनी नापसंद जाहिर की थी। अब मैं उनकी मन:स्थिति समझ सकता था कि आखिर क्यों उन्हें यह पेशा पसंद नहीं था। आज भी लोग परंपरागत पेशों मसलन इंजीनियरिंग, मेडिकल और सरकारी नौकरी को शादी के लिए तरजीह देते हैं। पता नहीं जो लोग नौकरी नहीं करते उनसे शादी के लिए कौन तैयार होगा? साफ है कि समाज आज भी जर्नलिज्म को शादी योग्य पेशा नहीं मानता या कहा जा सकता है कि शादी के बाजार में यह पेशा बिकाऊ नहीं है।

बाजारवाद के युग में समाज में पैसा ही सबसे बड़ा मूल्य हो गया है। क्यों नहीं वैवाहिक विज्ञापनों में कहा जाता है कि हमें सच्चरित्र और ईमानदार पति चाहिए। आखिर विवाह जैसे संबंध में रूप और धन का ही इतना बोलबाला क्यों है?

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