Thursday, March 4, 2010

हीरे को जौहरी की खोज

हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है। लेकिन इन दिनों ‘हीरे' तो चारों ओर बिखरे हैं मगर उनकी पहचान करनेवाले नहीं बचे। यह भी हो सकता है कि 'जौहरी' जानबूझकर को नजरअंदाज कर रहे हों। हीरे खुद को इस बात के लिए कोस रहे होंगे कि जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था तब वे अस्तित्व में क्यों नहीं आए! उन्हें यह भी शिकायत होगी कि जौहरियों को अभी ही गायब होना था। वे कम से कम ‘मिस्टर इंडिया' से मंत्र लेकर एक झलक तो दिखला जाते!

हीरे की आंखें इंतजार में पथरा गईं होंगी। बेचारे हीरे! अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के सिवा अब कर ही क्या कर सकते हैं। उन्हें किसी पर यकीन नहीं रहा और वे खुद ही अपनी ओर जौहरियों का ध्यान खींचने की कोशिश में लग गए हैं।

एक प्रचलित कहावत है-घर की मुर्गी दाल बराबर। लोग आसपास की चीजों को कमतर करके देखते हैं। इससे निराश 'हीरे' ने दांव खेला। खुद को नजरअंदाज किए जाने से दुखी लेकिन आस की डोर अब भी थामे हुए। 'हीरे' को अपने पैरवी करने वालों, प्रशंसकों और चाटुकारों पर भरोसा नहीं था। इसलिए उसने जौहरियों को 'जगाने' के लिए खुद ही कमान संभाल ली। बेहिचक, अपनी इच्छा को साफ-साफ सबको बता दिया! शायद 'हीरे' को यह आभास हो गया है कि वह अपने अंतिम पड़ाव पर है। उसे लगने लगा है कि इसके बाद ढलान ही ढलान है। यहां से लुढ़के तो लुढ़कते चले जाने की सच्चाई का उसे पता है। दो दशक में 'हीरे' ने कई ऐसे उदाहरण देखे होंगे! बिना हार माने 'हीरे' ने दमदार चाल चली! उसे पूरा यकीन है कि उसकी यह 'चाल' कामयाब रहेगी। 'चाल' के असफल होने के बारे में तो उसके 'दुश्मन' भी नहीं सोच सकते!आखिर वह है ही भाग्य का इतना धनी!

देश में 'हीरे' को कुछ लोगों ने 'भगवान' का दर्जा दे दिया है। हालांकि लोग उससे डरते नहीं हैं। उसके गुस्से का खौफ भी नहीं है। उससे व्यक्तिगत फायदे की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। फिर भी! यह बात अजीबोगरीब है लेकिन इसमें झूठ के लिए रत्ती भर भी जगह नहीं बचती। यह शोध का विषय है कि बिना डरे और व्यक्तिगत फायदे के बिना लोगों ने 'भगवान' का दर्जा कैसे दे दिया! 'हीरे' को उस देश या शहर में जाकर कुछ महीने या साल बिताना चाहिए, जहां लगभग रोज ही शोध रिपोर्ट प्रकाशित की जाती हो। अपने यहां तो इसका कोई स्कोप नहीं! तब जाकर अपने देश में 'हीरे' की 'चाहत'पूरी हो सकती है! क्योंकि लोग विदेशी चीजों को प्रामाणिक और बेहतर मानते हैं न! इससे 'हीरे' की 'परख'भी आसानी से हो सकती है!

1 comment:

  1. bhai akhilesh yah vyang shayad tumne tendulkar ko kendra me rakhakar likha hai. pata nahi is cricketer ke liye Bhagwan shabd kya arth rakhta hai, lekin is baat ko jhoothlaya nahi ja sakta ki filhaal koi bhi cricketer sachin ke bare me is tarah ki baat karne ki na to ichha rakhta hai or na hi haishiat. rahi baat heere ki parakh ke liye zauhari ki, to padm bhushan aur padm vibhushan jaise purskar ke kuchh patron ka chayan karke wo veergati ko prapt ho gaye hain. khair heere ko unki zaroorat nahin hoti kyoki pahchan ke liye uski apni chamak paryapt hoti hai.
    aur haan, achha vyang likhne ke liye badhai ke patra ho. maza aa gaya.

    Bhimsen

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