Friday, March 12, 2010

मुखर्जी की दूरदृष्टि

केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अगला प्रधानमंत्री बनने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गए हैं। ताजा आम बजट में उन्होंने वही सब किया है, जो मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तब किया था जब वे केंद्रीय वित्त मंत्री हुआ करते थे। उस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनमोहन की बड़ी सराहना की गई थी। सिंह की तरह मुखर्जी ने भी अमेरिका, कॉरपोरेट जगत और देश के खाते-पीते वर्ग को खुश करने के लिए तमाम उपाय किए हैं और आम आदमी को अठन्नी दे दी है।

दरअसल मुखर्जी जानते हैं कि मौजूदा दौर में भारत जैसे देश के शिखर पद पर वही व्यक्ति विराजमान हो सकता है, जो अमीर देशों खासकर अमेरिका और कॉरपोरेट जगत के आंखों का तारा हो। हामिद करजई, नूर अल-मलिकी, जरदारी और मनमोहन सिंह इसके आदर्श उदाहरण हैं।

बहरहाल केंद्र सरकार भी प्रणव मुखर्जी के अभियान को अपना पूरा समर्थन दे रही है। प्रस्तावित परमाणु प्रतिष्ठïनों में संभावित हादसे से संबंधित नागरिक देनदारी विधेयक और आम बजट के चमत्कारिक प्रावधानों की वजह से जो तल्खी का माहौल बना था, उसे महिला आरक्षण विधेयक के हंगामें में गौण करने का सफल प्रयास किया जा चुका है। अब देश की तमाम महिलाएं महंगाई की मार भूलकर लोकसभा और विधानसभाओं में पहुंचने के सपने देखने लगी हैं।

हां, महंगाई के मसले पर एक बात याद आई। प्रणव ने महंगाई पर लगाम लगाने और किसानों को उनकी उपज का उचित दाम दिलाने के लिए आम बजट में एक अद्भुत योजना का संकेत दिया है। वे घरेलू खुदरा क्षेत्र को देश-विदेश की बड़ी पूंजी के लिए खोलना चाहते हैं। उनका तर्क है कि इससे प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ जाएगी कि जनता को कम कीमतों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध होने लगेगी और किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे।

कितनी अच्छी योजना है यह। वैसे भी खुले आटे से सस्ता तम्बाकू बेचने वाली कंपनी का ब्रांडेड आटा मिलता है, जिसके साथ शुद्घता और पौष्टिकता आशीर्वाद स्वरूप मिलती है। इसके अलावा देश के छोटे-छोटे खुदरा व्यापारी सहज ही नौकरीपेशा हो जाएंगे और उन्हें तयशुदा नियमित आमदनी होने लगेगी। बेचारे किसानों को खेती करने से बेहतर अपने खेतों को पट्टे पर देना या बेचना ठीक लगने लगेगा और वे अपने ही खेतों में मजदूरी करने लगेंगे, क्योंकि प्रस्तावित योजना से कॉरपोरेट खेती की अवधारणा जोर पकडऩे लगेगी।

प्रणव दा ने एक और शानदार काम किया है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में निजी क्षेत्र के बैंकों का शानदार प्रदर्शन देखकर उन्होंने अपने देश में भी निजी क्षेत्र की कंपनियों को बैंक खोलने के लिए अतिरिक्त लाइसेंस जारी करने की अभूतपूर्व व्यवस्था दी है। अब हर गांव में बैंक होंगे, जिनके माध्यम से भविष्य की प्रणव सरकार ग्रामीणों और किसानों को सीधे वित्तीय सहायता मुहैया कराएगी। यह व्यवस्था सराहनीय कही जा सकती है क्योंकि तब किसानों को सरकार इतना पैसा देने लगेगी कि वे खुद ही नहरें खुदवा लेंगे, सड़कें बनवा लेंगे, बिजली घर स्थापित कर लेंगे और उर्वरकों के कारखाने खोल लेगें। सरकार तो ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे का विकास करेगी नहीं, विश्व बैंक ने ऐसा करने से मना कर रखा है और उसने धीरे-धीरे उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी भी कम करना शुरू कर दिया है। सरकार का मनना है कि किसानों को पैसे दे दो वे खुद ही अपने लिए सारे इंतजाम कर लेंगे, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में किया हुआ है।

-भीमसेन (लेखक दिल्ली से प्रकाशित एक बिजनेस अखबार से जुड़े हैं.)

1 comment:

  1. भीम जी ने बहुत ही बढ़िया और विचारोत्तेजक लेख लिखा है. उनकी दूरदर्शिता और अर्थशास्त्र पर पकड़ काबिलेतारीफ है.

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