Friday, January 14, 2011

एक अज़ीज की याद में


किसी के बहुत करीब होना जितना सुखद है उसी अनुपात में दुखद भी। शायद यही वजह है कि ज्यादातर पति-पत्नी एक-दूसरे को झेलते हैं और स्वतंत्र खयाल रखने वालों की शादी ज्यादा दिन तक नहीं टिकती। सामान्य तौर पर लोग हर चीज को जीत और हार के रूप में देखने के आदी होते हैं। इस प्रवृत्ति से तल्खी बढ़ती है और कुदरती व्यवहारकुशलता कहीं खो जाती है। इसके असर से सब कुछ औपचारिकता में तब्दील हो जाता है। यानि व्यवहार में बनावटीपन आने लगता है।
कई मौकों पर हमारी गतिविधियां सामने वाले को केवल खुश करने के लिए होती है या फिर चिढ़ाने के लिए। मतलब यह कि स्वाभाविक व्यवहार की गुंजाइश धीरे-धीरे कम होती जा रही है। जो लोग स्वाभाविक व्यवहार वाले होते हैं, उन्हें सीधा (बेवकूफ) कहकर परोक्ष रूप से मजाक बनाने की कोशिश की जाती है।
मेरे एक पत्रकार मित्र की व्यवहारकुशलता और विनम्रता की बड़ी ख्याति है। लेकिन मैं और उसके कुछ अन्य करीबी मित्र उसकी खिल्ली उड़ाते हैं और वह झेंप जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमलोग उसकी कमियां जानते हैं और बाहरी दुनिया उसकी खूबियां जानती है। लेकिन यह भी सच है कि हम सब आपस में जितना मस्ती कर लेते हैं, उस तरह की मस्ती कहीं और संभव नहीं है।
- भीम सिंह

3 comments:

  1. सोलह आने खरी बात है जी। उतना ही सच जितना कि सुरज पुरब से निकलता है।

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  2. यादों का क्या है...बस यूं ही आ जाती हैं. कभी ग़म दे जाती हैं तो कभी इनके आने से ख़ुशी से मन झूमने लगता है. तुम्हारे साथ क्या हुआ, ये तो पता नहीं. क्या हुआ?

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  3. हमारे साथ कुछ विशेष नहीं घटित हुआ। जो मैने गौर किया है, वह सामान्य परिस्थियों की एक झलक है जो अमूमन सब के साथ होता है। तुम्हारे साथ भी, हमारे साथ भी और बाकी दुनिया के साथ भी। हां यह लगता जरूर है कि हमारे हालात कुछ खास हैं, लेकिन खास कुछ होता नहीं है।

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