Friday, April 8, 2011

हजारे और हकीकत


अन्ना हजारे एक ऐसी सरकार के मुखिया से भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून बनाने की गुहार लगा रहे हैं जो अब तक सबसे भ्रष्ट साबित हुई है। एक बात समझ में नहीं आती कि भ्रष्ट लोगों के पनाहदाता से ही इसके खिलाफ कानून बनाने की मांग करते हुए आमरण अनशन करने का क्या अर्थ है। हजारे मनमोहन सिंह को कौन सी नई बात समझाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे वह अनजान हैं।
कहा जा सकता है कि महात्मा गांधी ने भी यही तरीका अपनाया था और उन्हें सफलता भी मिली थी। लेकिन ऐसा कहना पूरा सच कहने जैसा नहीं है, बल्कि पूरे घटनाक्रम के केवल एक अध्याय का जिक्र करना भर है। ऐसे अनेक अधिकृत दस्तावेज पड़े हैं, जिनसे यह बात स्थापित होती है कि भारत की आजादी केवल महात्मा गांधी की रणनीति का नतीजा नहीं था और ऐसा मानना मुगालते में रहने जैसा है।
हां मैं विषय से भटक गया, लेकिन पूरी तरह नहीं। चूंकि हजारे गांधी की बड़ी-बड़ी तस्वीरों के साथ जंतर-मंतर पर सत्याग्रह कर रहे हैं, इसलिए समय को थोड़ा पीछे ले जाना पड़ा।
मैं गांधी और हजारे जैसी हस्तियों का कतई विरोधी नहीं हूं और नहीं मुझे उनकी मंशा और क्षमता पर संदेह है, बल्कि मुझे उनके तरीके पर आपत्ति है। हजारे आमरण अनशन करके सरकार को इस बात के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रस्तावित जन लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने में सरकारी तंत्र से बाहर के लोग भी शामिल किए जाएं और यह विधेयक भ्रष्टïाचार के खिलाफ कठोर कानून की शक्ल ले ले।
मुश्किल यह है कि जो सरकार भ्रष्टाचार के ईंधन से ही चल रही हो, वह हजारे की बात कैसे मान सकती है। ऐसी स्थिति में या तो हजारे रहेंगे या फिर सरकार। दूसरी संभावना ज्यादा है क्योंकि जाहिर है, कोई भी तंत्र खुद का अस्तित्व मिटाने का उपाय नहीं कर सकता और इसके लिए सत्याग्रह करना कतई व्यवहारिक नहीं है।
यह भी कहा जा सकता है कि सूचना का अधिकार कानून हजारे और उनकी राह पर चलने वाले लोगों की कोशिशें का नतीजा है। हो सकता है यह सही हो, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि सूचना के अधिकार कानून से केवल भ्रष्टाचार के संकेत मिल सकते हैं, निवारण के उपाय नहीं। इसलिए सरकार के लिए यह कानून बनाना मुश्किल जरूर रहा होगा, लेकिन इसकी वजह से उसके अस्तित्व को कतई खतरा नहीं था।
दूसरा यह कि यदि सूचना के अधिकार की गुहार हजारे नहीं लगाते, तो कोई और लगाता और इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सर्वोच्च न्यायालय सरकार को इस तरह के कानून बनाने के लिए बाध्य कर देती। जैसा कि उसने पीजे थॉमस (पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त) और ए राजा (पूर्व संचार मंत्री) के मामले में किया है।
इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हजारे को खारिज कर रहा हूं, बल्कि मैं यह कहना चाह रहा हूं कि वह सरकार को आत्महत्या करने के लिए कह रहे हैं। लेकिन सरकार भी कम शातिर नहीं है। वह बीच के रास्ते पर चलने के संकेत देने लगी है, जिसकी कोई व्यवहारिकता नहीं होती। हम या तो सच बोलते हैं या झूठ। इन दोनों के बीच बोलने का दावा या कोशिश छलावा है।
-भीम सिंह

8 comments:

  1. There is some unclarity in second last para as SC can asked the govt that by what authority the appointment of tainted Thomas has been done on the office of CVC by issuing a writ. SC cannot force the govt to make law it can only interpret the law.

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  2. hazare bhi rahe aur sarkar bhi. congress ka gandhiwadi hathiyar congress par hi bhari pada.. .. apke lekh ko padhkar aisa laga jaise aap gandhi ki prasangigkta ko kamtar aank rahe hai.. mat bhooliye egypt ne isi tareeke se tanashahi shashan se mukti payee.

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  3. हजारे भी हिट हुए, हजारे का तरीका भी हिट हुआ... आपके द्वारा दिए गए तर्कों से मै कतई सहमत नहीं हूँ... क्योंकि हजारे का मकसद इतना साफ़ था तो तरीका कहीं मायने नहीं रखता....

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  4. सवाल तो अब खड़ा होता है....परिवारवाद के नाम पर....
    सिविल सोसायटी की तरफ से 5 सदस्यों में बाप-बेटे(शांति भूषण-प्रशांत भूषण)-कैसा परिवारवाद-..क्या परिवारवाद के इस रूप से बिल का ड्राफ्ट सही छंग से बन पायेगा...संदेह है...लगता है अन्ना के आंदोलन को बाप-बेटे ने मिलकर हाइजैक कर लिया है......

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  5. "मुश्किल यह है कि जो सरकार भ्रष्टाचार के ईंधन से ही चल रही हो, वह हजारे की बात कैसे मान सकती है। ऐसी स्थिति में या तो हजारे रहेंगे या फिर सरकार।"
    ७३ साल के हो चुके है अन्ना. हो सकता है कि समिति के कानून ड्राफ्ट करते या कानून बनते बनते वो निपट लें. वो तो ये भी नहीं देख पाएंगे कि लोकपाल का क्या हस्र होगा!! हाँ, उन्हें पिछली चीजें भी कोई नहीं दिखा रहा है कि देश के हर राज्य में लोकपाल बैठा है!!!

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  6. I did't say that SC can make any law, instead I wish to say that it can enforce the govt. to do so by a series of verdicts in a manner by which the govt. would feel that it is neccesary to maintain it's credibility.

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  7. @ Pravin K Prabhat: भाई साहब, अन्ना के आन्दोलन को हाइजैक बाप बेटे ने नहीं, इस देश के लुटेरे सत्ताधारियों ने किया है. इनकी चालें बड़ी शातिराना हैं. आम जनता को पता तक नहीं चलता. इनका साथ देने के लिए सत्ता और पैसे की भूखी हमारी मीडिया जो बैठी है. मीडिया में जो अच्छा है, बेचारा किनारे कर दिया जाता है. चापलूस और अवसरवादी लोग हमेशा मीडिया में कई सीढियां चढ़ बैठते हैं.

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  8. @ भागीरथ :मेरे विचार में गांधी बिलकुल आज भी प्रासंगिक हैं. यह केवल इसलिए नहीं के उनके कारण देश को आज़ादी मिली, बल्कि इसलिए क़ि उनके जैसे सत्यवादी, जुझारू, चरित्रवान और इमानदार व्यक्ति के राजनीती के केंद्रबिंदु में रहते हुए भी नेहरु जैसा अवसरवादी, चरित्रहीन, बहुरुपिया व्यक्ति इस देश की बागडोर ले बैठा, गांधीजी की एक न चली. वे भारत के विभाजन के पक्षधर नहीं थे, गोहत्या के विरोधी थे, धर्म के नाम पर राष्ट्र के विरोधी थे, आजादी के बाद कांग्रेस नामक संस्था को समाप्त करने के पक्षधर थे; पर उनके सिद्धांतों, भावनाओं और विचारों का गला घोंट कर आज तक वही कांग्रेस अंग्रेजों की औपनिवेशिक नीतियों पर सरकार चला रही है, जिसके घोर विरोधी गांधीजी थे. और उसपर तुर्रा ये, क़ि वे अपने आप को गांधीजी के उत्तराधिकारी मानते हैं.

    आज की भी परिस्थितियां हैं कि सब भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, सब उसे समाप्त करना चाहते हैं, तो आखिर भ्रष्टाचार कर कौन रहा है? भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा खा रहे नेता भी यह कहते हैं कि वे अपने आप को निर्दोष साबित कर देंगे. तो ये लूट कर कौन रहा है? आज भी अच्छे नेता की कोई पूछ नहीं है, और गुंडे, मवाली, चोर, उचक्के, लुटेरे मंत्री बने फिर रहे हैं, जैसे गांधीजी ने सत्ता उनकी बपौती करने के लिए ही आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी और लाखो लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी. कितने लोगों को पता है कि हमारे देश की आज़ादी की लड़ाई में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से छः - सात लाख लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी जो कि विश्व के किसी भी देश के आज़ादी के इतिहास में नहीं दीखता. फिर भी हम उन क्रांतिकारियों के सपनों का भारत आज तक आज़ादी के ६३ वर्ष बीत जाने पर भी नहीं बना पाए हैं. हम आज़ादी की लड़ाई में गंधिजे के योगदान को नहीं झुठला सकते पर साथ ही साथ उन क्रांतिकारियों के बलिदान को भी नहीं भुला सकते जिन्होंने हँसते हँसते अपने प्राणों को भारत माता पर न्योछावर कर दिया.

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