Tuesday, October 30, 2012

डगमगाते मनमोहन और यूपीए -2

मेरे एक करीबी दोस्त का कहना है कि इस दुनिया में जुगाड़ और खेमेबाजी की बदौलत कुछ भी हासिल किया जा सकता है। पहले मैं उसके इस नजरिये से इत्तेफाक नहीं रखता था, लेकिन अब कम-से-कम अपने देश में तो इसके कई नजीर हैं। विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान मैंने एक छोटा सा उपन्यास पढ़ा था, उसका नाम तो याद नहीं है, लेकिन शायद कहानी किसी लातिन अमेरिकी देश से संबंधित थी। वहां एक राजा था, जिसके मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों की करगुजारियों की वजह से राज्य प्रशासन की बड़ी बदनामी हो रही थी। लिहाजा राजा पर उन्हें हटाने का दबाव बढ़ रहा था। लेकिन उसे लग रहा था कि यदि वह इस दबाव के अनुरूप अपने कुछ सिपहसालारों को बाहर का रास्ता दिखा देता है, तो राज्य प्रशासन में खामी की पुष्टिï हो जाएगी और सत्ता विरोधी खेमे का मनोबल भी बढ़ जाएगा। इस चलते उसने अपने विरोधियों के मंसूबों पर पानी फेरने के उद्देश्य से मंत्रिमंडल के उन सदस्यों को पदोन्नति दे दी, जिन पर भ्रष्टाचार के सबसे गंभीर आरोप लगे थे और उन सदस्यों का ओहदा घटा दिया, जो अपेक्षाकृत ईमानदारी से काम कर रहे थे। इसका असर यह हुआ कि सत्ता में हिस्सेदारी रखने वाले भ्रष्ट लोगों का मनोबल बढ़ गया और जनता के बीच स्वस्थ छवि वाले लोग बड़े आहत हुए। जाहिर है, जनता भी निराशा में डूब गई। समस्या की गंभीरता यहीं खत्म नहीं हुई। सत्ता के भ्रष्टï तबके का साहस इस कदर बढ़ गया कि वह सारे नियम-कायदों को ताक पर रखकर मनमानी करते हुए जनता पर कहर ढाने लगे। नतीजतन जनता के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने विद्रोह कर दिया। फिर क्या था, सत्ताधारी खेमा बिखर गया और अंतत: राजा की हत्या कर दी गई। अपने देश में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उसी राह पर चलते हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि जिस कहानी का जिक्र मैंने किया है, उसकी पृष्ठभूमि तकरीबन 200 साल पुरानी है, इसलिए उस तरह के हादसे की आशंका नहीं है, जैसा कि उस दौरान हुआ था। फिर भी नतीजे की तस्वीर अलग हो सकती है, लेकिन इन चीजों का थोड़ा-बहुत असर तो होगा ही। मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए कुछ नये चेहरों को कैबिनेट का हिस्सा बनाया, जिस पर ज्यादा बहस की जरूरत नहीं है। जो चीज खल रही है, वह यह कि उन्होंने एस जयपाल रेड्डïी का ओहदा घटाते हुए उन्हें पेट्रोलियम मंत्रालय से हटा दिया और सलमान खुर्शीद का ओहदा बढ़ाते हुए उन्हें विदेश मंत्री बना दिया। प्रधानमंत्री को मंत्रिमंडल में फेरबदल करने का विशेष अधिकार होता है और अक्सर उनके इस तरह के फैसलों के बारे में सवाल नहीं किए जाते। लेकिन यदि कुछ अप्रत्याशित होता है, तो संबंधित फैसले के आधार पर सवाल उठने ही चाहिए, जैसा कि मीडिया के एक धड़े ने किया है। अंग्रेजी दैनिक 'द हिंदू' ने लिखा है कि चूंकि जयपाल रेड्डी ने गैस की कीमत बढ़ाए जाने और कृष्णा-गोदावरी तेल-गैस क्षेत्र से उत्पादन घटाने के मसले पर मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज की लगाम कसी, लिहाजा प्रधानमंत्री ने उन्हें दंडित किया। मुझे याद है कि पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के साथ भी ऐसा ही किया गया था। हालांकि पर्यावरण मंत्रालय से हटाकर उन्हें जो नया विभाग सौंपा गया, वह किसी भी लिहाज से कम महत्त्वपूर्ण तो नहीं है, लेकिन उस विभाग का कॉरपोरेट जगत से कोई सीधा लेनादेना भी नहीं है। पर्यावरण मंत्री रहते हुए रमेश ने उन कंपनियों पर नकेल कसने की कोशिश की थी, जो सभी कानूनों को ताक पर रखते हुए मनमाने तरीके से पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे थे। ये दोनों ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे जाहिर होता है कि मंत्रिमंडल के ढांचे का निर्णय लेते समय कॉरपोरेट जगत की जरूरतों और पेरशानियों का बहुत खयाल रखा जाने लगा है या यूं कहें कि कॉरपोरेट खेमा अब इस कदर प्रभावशाली हो गया है कि वह अपने पसंद की हस्ती को ऐसा ओहदा दिलाने की कूबत रखता है, जिससे उसके लिए आगे की राह आसान हो सके। ये तो थोड़ा तार्किक तरीके से काम करने वाले मंत्रियों को दंडित करने के उदाहरण हैं। अब जरा, सलमान खुर्शीद साहब पर गौर करें, जिनका ओहदा बढ़ाया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने अरविंद केजरीवाल और मीडिया की तरफ से आरोप लगाया गया था कि खुर्शीद और उनकी पत्नी की ओर से संचालित एक गैर-सरकारी संगठन ने विकलांगों के हित में काम करने के लिए सरकार से पैसे लिए, जिसके इस्तेमाल में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया। केजरीवाल और मीडिया ने कई ऐसे साक्ष्य पेश किए, जिन पर संदेह नहीं किया जा सकता और कई जांच एजेंसियों ने भी इस घपले पर मुहर लगाई है। लेकिन प्रधानमंत्री की नजर में खुर्शीद पाक-साफ हैं, लिहाजा वह अंतरराष्ट्रीय फलक पर देश की छवि चमकाने की काबलियत रखते हैं। हो सकता है कि रमेश, रेड्डी और खुर्शीद का मामला इतना सरल न हो कि आम जनता को समझ में आए और जिन्हें ये चीजें समझ में आती हैं वे मतदान करने के लिए घर से नहीं निकलते, इसलिए वोट बैंक के स्तर पर मौजूदा सरकार को इन चीजों से नकुसान होता हुआ न दिखे। लेकिन अब एक ऐसा वर्ग भी सक्रिय हो रहा है, जो बड़े सरल तरीके से लोगों को मनमोहन ऐंड कंपनी की करगुजारियों से वाकिफ करा रहा है। एक पत्रिका के संपादकीय में कहा गया है कि केंद्र की मौजूदा सरकार यह मानकर चल रही है कि अगले आम चुनाव में उसका पत्ता साफ होने वाला है, इसलिए वह तमाम ऐसे काम निपटाने की जल्दी में है जो उसके परोक्ष एजेंडे में शामिल है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के हालिया विस्तार में
प्रधानमंत्री ने जो हठधर्मिता दिखाई है, उसकी एक वजह यह भी हो सकती है। अमेरिका के साथ परमाणु करार करते समय भी उनका रुख ऐसा ही था। -(भीम सिंह)

6 comments:

  1. यह सब भारत में केवल पढ़ा जायगा

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  2. super boss. maza aa gya

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  3. Bilkul sahi kaha aapne...ye nirnay kaalikh se pute chehre ko syahi se saaf karne ki koshish jaisa lagta hai...lekin sabse bada or kathin sawal aam janta ke saamne aane wala hai ki agali sarkar kon si party ki chune.kyunki sari partiya to mausere bhai hain. sari badi partiyon ke chehre per bhrashtachaar ki kaalikh puti hui hai jise ye besharmi ki chadar se dhakne ki nakaam koshiah me lage hue hain.

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  4. Superb writing skills, appropriate selection of topic, excellent analysis, excellent flow of language. I would give 9.5 out of 10 to this story :)

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  5. लगता है मौनी बाबा और टीम लूट-ग्रेस को जनता के वोट से ज्यादा वोटिंग मशीनों में की गई कारगुजारियों पर ज्यादा भरोसा है. इसलिए वे निश्चिन्त हैं.

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