Saturday, March 7, 2009

कितने अनोखे रंग-1



बचपन में हर त्योहार का इंतजार रहता था। होली, दुर्गा पूजा, दीपावाली और छठ। ये कुछ महत्वपूर्ण और बड़े त्योहार थे। इसके अलावा कुछ अन्य छोटे त्योहार भी थे। हमारा पूरा साल एक के बाद एक त्योहारों का इंतजार करते बीत जाता था। तब ये लगता था कि दो पर्वों के बीच न जाने कितने सालों का अंतर होता है। 365 दिन हमारे लिए 365 साल के बराबर हुआ करते थे।


होली का इंतजार वसंत पंचमी के बाद से ही शुरू हो जाता था। हम होली के 20-25 दिन पहले से ही केले का रस इकट्ठा करना शुरू कर देते थे। घर वालों से छुपकर। यह मान्यता थी कि रंग के घोल में इसे मिलाने से कपड़े से रंग नहीं जाएगा। चाहे कपड़े की कितनी भी धुलाई क्यों न की जाए। होली पर नए कपड़े और रंग-बिरंगी पिचकारी खरीदे जाने पर बहुत खुशी होती थी। महीनों पहले से ही इन सब चीजों की लिस्ट तैयार कर लेते थे। और आश्वसान भी चाहते थे कि हमें ये चीजें दिला दी जाएंगी। ये पता नहीं था कि बिना लिस्ट बनाए और जिद किए भी ये सारी चीजें हमारे पास होंगी। इन छोटी-छोटी चीजों के मिलने से कितनी खुशी होती थी! न कोई फिक्र न डर।


होली के दिन सुबह से रंग घोल के हम तैयार हो जाते थे। रंग डालने की शुरुआत घर के सदस्यों से ही होती थी। पिचकारी का एक विकल्प भी था। कच्चे आलू को दो भागों बांट उसके अंदर वाले हिस्से को खुरेच चोर और 420 लिखवाते थे। ये काम हमारे भईया किया करते थे। लेकिन उस वक्त ये समझ नहीं आता था कि आलू पर चोर और 420 तो उल्टा लिखते हैं लेकिन रंग में डुबोकर जब किसी की पीठ पर ठप्पा लगाते हैं तो सीधा कैसे छप जाता है? कितने बेवकूफ थे हम बचपन में! घंटों रंग खेलते लेकिन मन नहीं भरता था। जब माई या बाबू जी नहाने के लिए कहते तो हम चाहते कि थोड़ा और रंग खेलने को मिले!


होली की बात हो और खाने का जिक्र छोड़ दें तो मजा नहीं आएगा। कई किस्मों के पकवान से वातावरण दमकता रहता था। इसमें दही के साथ कचौड़ी खाना लाजवाब अनुभव देता था। आलू दम में कटहल मिला हो तो वो चिकन से तनिक भी नहीं लगता। हमारे पड़ोसी हमें चिकन और मटन की दावत पर बुलाते और हम छककर खाते।

9 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. होली के मौसम में आपने गांव के केले के खेत की याद को ताजा कर दिया है । बहुत पहले इसके बारे में सोचना और तैयारी करना शुरू कर देते थे । खासकर स्कूल जाने और आने के समय तो अपने साथियों के साथ जरूर यह बात होती थी कि इस बार कैसे होली मनाना है । यू कहे कि इसका इंतजार शिद्दत से किया जाता था । हमलोग दोस्तो के साथ मिलकर होली मनाते थे । लेकिन शहरी जीवन के लिए अब केवल यादे शेष रह गयी है । भावनात्मक लेख । शुक्रिया

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  3. होली के मौसम में आपने गांव के केले के खेत की याद को ताजा कर दिया है । बहुत पहले इसके बारे में सोचना और तैयारी करना शुरू कर देते थे । खासकर स्कूल जाने और आने के समय तो अपने साथियों के साथ जरूर यह बात होती थी कि इस बार कैसे होली मनाना है । यू कहे कि इसका इंतजार शिद्दत से किया जाता था । हमलोग दोस्तो के साथ मिलकर होली मनाते थे । लेकिन शहरी जीवन के लिए अब केवल यादे शेष रह गयी है । भावनात्मक लेख । शुक्रिया

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  4. bachpan ke din yaad aa gaye.sath hi SUDARSHAN FAKIR ka likha aur JAGJIT SINGH ka gaya gana 'ye daulat bi lelo, ye shohrat bhi lelo bhale chhin lo mujhse meri jawani, magar mujhko lauta do bacpan ki yaadein' yaad ho aaya.

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  5. Holi khelna to thik. mujhe tumhare nahane par shak hai. Kyonki holi khelte-khelte to rat ho jati hogi. Phir tumhe thandh to kuchh jyada hi lagti hai. Yar tum raat me nahate kaise hoge.

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  6. kya bat hai.mat yad dilaya karo wo din..........wo
    rang se bhari balti wo dahibade..aur na jane kya kya ......ab to bus ye sub ek yad bankar reh gayi hai.

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  7. lagta hai jaise is jindgi ki bheed me hum ya kahe hamara bachpan bhi kho gya hai kahi.....koi lauta de wo pyare pyare din...........................................

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  8. Ye lekh ya yun kahen laghu atmkatha atyant hi sundar tarike se likhit aur bhavukata se aot prot tha. ye tumhari lekhni se nikli hui sarvottam abhivyakti lagi. iske liye badhai aur tum aage is se bhi sundar abhivyakti dekar apne karmakshetra me aage badho.

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