पटनायक दूसरे नवीन हैं, जिनसे भाजपा इस समय जली भुनी बैठी है। पहले हैं चुनाव आयुक्त नवीन चावला। पटनायक जब से राजनीति में आए हैं उनकी छवि साफ-सुथरी और काम से काम वाली है। राजग सरकार में वे सबसे शांत और अविघ्नकारी सहयोगी थे। कंधमाल की घटनाओं ने उड़ीसा की तरफ ध्यान खींचा नहीं तो नवीन बाबू अपनी अब पुरानी पड़ती जा रही शांत छवि के सहारे राजकाज चला रहे थे। लेकिन पिछले दिनों जो झटका उन्होंने भाजपा को दिया वह सबको भौंचक्का कर गया। अब सबकी निगाहें उन पर टिक गई हैं।
वैसे नवीन पटनायक को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता बीजू पटनायक भी उड़ीसा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। माता-पिता के लिए नवीन पप्पू थे। बचपन से ही नवीन पटनायक को अपनी मां से बेहद लगाव था। उनकी पढ़ाई देहरादून के वेल्हम ब्वॉयज स्कूल और दून स्कूल से हुई। स्नातक की पढ़ाई नवीन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की।
अपने पिता बीजू पटनायक की मौत के बाद नवीन अमेरिका से वापस आए और 11 वीं लोकसभा में अस्का संसदीय क्षेत्र से उप चुनाव जनता दल के टिकट पर जीत कर संसद सदस्य बने। दिसंबर 1997 में नवीन ने जनता दल से अलग होकर बीजू जनता दल के नाम से अपनी पार्टी बनाई और 12 वीं लोकसभा के लिए अस्का संसदीय क्षेत्र से दोबारा चुने गए। वर्ष 2000 में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से नवीन पटनायक उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने। अपने साझा प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के खिलाफ भाजपा और बीजद की नजदीकियां बढ़ीं थीं। नवीन पटनायक इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) के संस्थापक सदस्य हैं। राजनीति से अलग नवीन लेखन का कार्य भी करते रहे हैं। उन्होंने तीन किताबें भी लिखी हैं।
बीजद ने वर्ष 1998 के आम चुनाव में नौ सीटों पर जीत दर्ज की थी। तब नवीन पटनायक को खनिज मंत्री बनाया गया था। इसके अगले ही साल वर्ष 1999 में बीजद के सीटों की संख्या बढ़कर दस हो गई। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजद ने राज्य की 21 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की। इसके साथ ही बीजद ने वर्ष 2000 और 2004 के उड़ीसा विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ मिलकर बेहतर प्रदर्शन किया और साझा सरकार बनाई। नवीन केंद्र में मंत्री का पद छोड़ राज्य की बागडोर संभाल ली। राज्य में पिछले 11 साल से चल रहे भाजपा-बीजद गठबंधन का अंत लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के मद्देनजर सीटों के बंटवारे को लेकर हो गया। यह गठबंधन दो विपरीत विचारधारा वाले दलों का था। लेकिन बीजद के लिए गठबंधन तोड़ना मजबूरी भी हो गया था, क्योंकि पिछले साल अगस्त-सितंबर में राज्य के कंधमाल जिले में ईसाइयों पर हमले से पटनायक सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी। ऐसे में नवीन पटनायक जनता के सामने इस संदेश के साथ जाएंगे कि देर से ही सही हम सांप्रदायिकता के खिलाफ हैं। भाजपा के लिए यह एक बड़ा झटका है।
बीजद के इस कदम की वाम दलों ने जमकर प्रशंसा की। ग्यारह साल तक भाजपा के साथ सत्ता का सुख भोगने वाले नवीन आज उन्हें धर्मनिरपेक्षता के पुरोधा नजर आ रहे हैं। बीजद को तीसरे मोर्चे में शामिल करने की पुरजोर कोशिश भी वाम दल कर रहे हैं लेकिन नवीन ने अभी अपना पत्ता नहीं खोला है। अब देखना यह है कि नवीन का भाजपा से संबंध तोड़ने का फैसला कितना फलदायी होता है। उनके आगे क्या कदम होंगे, यह भी आम दिलचस्पी का विषय रहेगा। क्या वे तीसरा मोर्चा के घटक बनेंगे या अपने पत्ते चुनाव परिणाम देखकर ही खोलेंगे?
Thik kaha. BJP ka Naveeno se ajkal chhattis ka aankada chal raha hai. Lekin yah achanak nahin hua. Chawala ka mamla to lambe samay se hai, aur mere samajh se kam-se-kam is mamle me BJP ka rukh thik hai. Rahi bat Patnayak ki to kandhmal ke bad yah awashyambhavi tha.
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