इन दिनों मैं बड़ी उलझन में हूं। क्योंकि आजकल मुङो रात में सपने नहीं आते। इस परेशानी को किसी को बताते हुए शर्म आती है! इसमें कोई कुछ कर भी तो नहीं सकता! सारे सपनों पर आजकल नेताओं और अभिनेताओं ने कब्जा कर लिया है। सपनों का इन लोगों ने कॉपीराइट करा लिया है। इसलिए यह आम आदमी की पहुंच से दूर हो गया है। पहले वाला जमाना तो रहा नहीं कि इसे गोदाम में भर कर रखेंगे। फिल्मों ने सेठ के गोदामों के ताले को तोड़ने का नुस्खा जन-जन तक पहुंचा दिया है! इसलिए सतर्कता बरती जा रही है! विकल्प के तौर पर सपनों का कॉपीराइट करा लिया गया है। अब सपनों पर एकाधिकार है, इनकी मर्जी के बिना कोई सपना नहीं देख सकता!
यदि कोई सपना देखना ही चाहता है तो उसे अनुमति लेनी होगी या फिर वही सपना देखना होगा जो हुक्मरान दिखाएं! जसा ठीक पांच साल पहले भारत चमकने का सपना दिखाया गया था! अब पांच साल बाद फिर एक नया सपना दिखाया जा रहा है। भारत के निर्माण का! यह सपना तो हमें पिछले कई दशकों से दिखाया जा रहा है। लेकिन निर्माण यहां हुआ ही नहीं! हुआ होगा कहीं और! किसी नेता या अभिनेता के यहां! आजकल वैसे भी सपने दिखाने की होड़ मची है। ताजातरीन सपना मायावी नगरी के एक भाई का है। भाई ने धरती पर जन्नत बनाने का सपना देखा है! वाकई लाजवाब सपना है! लेकिन झूठे सपने दिखाने वालों का हश्र तो पता है न। उन्हें सिर्फ इंतजार करना पड़ता है! हम तो यह दुआ करेंगे कि इस बार पिछली बार की कहानी न दुहरायी जाए!
इससे अलग कुछ व्यक्तिगत सपने भी हैं। इन्हीं में से एक है पीएम बनने का सपना! इसके लिए जोड़-तोड़ का खेल भी शुरू हो गया है। एक नए आधार की खोज की जा चुकी है। जाति और धर्म के साथ-साथ क्षेत्रवाद भी कतार में आ चुका है! नया आधार भी कम मारक नहीं है! इन सब के सहारे शिखर पर पहुंचने की कवायद शुरू हो चुकी है। दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन जाएंगे! कुर्सी पाने की ललक ही कुछ ऐसी होती है। इसके सिवा कुछ सूझता ही नहीं!
लेकिन मेरी उलझन जस की तस है। मेरे सपने पर कब्जा कब तक रहेगा? मेरी आंखें बेख्वाब कब तक रहेंगी? कॉपीराइट का जवाब कोई है भी या नहीं। क्या यूं ही उधार के सपने से काम चलाना होगा!
to koi nahi 3-4 month baad aapko sapne aane lagenge...chunav baad :)
ReplyDeleteHamesha ki tarah sahi nabj pakdi hai.
ReplyDeleteBhai apna format badlo to tippani karne me suvidha hogi.