Saturday, March 28, 2009

तीर-तुक्कों के भरोसे

एक सुबह मैंने अपने पड़ोसी वर्मा जी को बोरिया बिस्तर लेकर फ्लैट से निकलते हुए देखा। मुङो थोड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने उन्हें टोका- वर्मा जी सुबह-सुबह अचानक कहां चल दिए? उन्होंने बुरा-सा मुंह बनाते हुए कहा-मैं अगले कुछ महीनों के लिए बाहर जा रहा हूं। जवाब सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने पूछा क्यों? ऐसी क्या विपत्ति आ गई? वर्मा जी ने कहा-अखबार-टीवी से तुम्हारा तो छत्तीस का आंकड़ा है। कुछ खबर तो रखते हो नहीं। सुनो- देश में चुनाव होने तक सरकार ने सुरक्षा को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं। इसीलिए तो आईपीएल को भी देश से बाहर कर दिया गया है! मुङो अपनी भाग्यवान और बच्चों की बड़ी फिक्र है, इसलिए मैंने यह फैसला किया।

मैंने शिकायत भरे लहजे में कहा- वर्मा जी, आप बड़े डरपोक किस्म के आदमी हैं! अपनी बीवी और बच्चों के सामने मेरा यह कहना उन्हें अच्छा नहीं लगा। मेरी इस बात पर वर्मा जी बगले झांकने लगे। मैंने बिगड़ती बात को संभालने की कोशिश करते हुए कहा- वर्मा जी, अपनी सरकार न खिलाड़ियों को ‘पप्पूज् नहीं बनने देना चाहती। उन्हें थोड़ी राहत मिली। उन्होंने पूछा-वो कैसे? मैंने उन्हें समझाया- यदि चुनाव और आईपीएल साथ-साथ होते तो क्रिकेटर वोट नहीं दे पाते। ऐसे में क्रिकेटर 'पप्पू' बन जाते कि नहीं! वर्मा जी ने मेरी बात से सहमति जताई।

इसके बाद भी वर्मा जी को शांति नहीं मिली। उन्होंने पूछा आईपीएल को दक्षिण अफ्रीका ही क्यों शिफ्ट किया गया? मैंने कहा यही तो राज की बात है! ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि शाहरुख, शिल्पा और प्रीति तीनों वहीं फिल्मों की शूटिंग कर रहे थे! उनकी सहूलियत के लिए ऐसा किया गया। अब वे शूटिंग के साथ-साथ अपने-अपने टीम के लिए चीयर लीडर्स का काम भी कर सकेंगे! अपने कुछ क्रिकेटरों को भी प्रचार के लिए शूट करना था! बस, हो गया न एक पंथ दो काज! आप तो नाहक ही परेशान हो रहे थे। वर्मा जी को थोड़ा और सुकून मिला।

मैंने वर्मा जी को संयत होते देख कहा कि इसकी एक और वजह है। यह सुनते ही वर्मा जी के माथे पर दोबारा चिंता की लकीरें उभर आईं। मैंने कहा- देश के नुमाइंदों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि उन्हें कुर्सी से चिपके रहना कितना अच्छा लगता है! सब अपनी-अपनी कुर्सी बचाने के जुगत में हैं! ऐसे में ध्यान भटकाने वाली चीज को टरका देना ही उचित विकल्प था! क्योंकि एक बार कुर्सी फिसली कि मक्खन के मटके से जुदा हो जाएंगे और इसे बर्दाश्त कर पाने की क्षमता वे मेले में भूल आएं हैं! अब तो नए तीर-तुक्कों का ही सहारा है!

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