Monday, May 11, 2009

आगे की सोचो, सुखी रहो

देश में चुनाव कराने वाली संस्था को मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूं। मेरी आयोग से विनम्र अपील है कि वह प्रधानमंत्री के लिए पूरे देश में चुनाव न कराए। इस समय तो लगभग दर्जन भर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। उन्हीं लोगों में से किसी एक को चुनने का विकल्प जनता को दे दिया जाना चाहिए। पूरे देश में महीनों तक चुनाव प्रक्रिया चलाना कहां की अक्लमंदी है। देश के हर क्षेत्र और वर्ग के नेता इस दौड़ में हैं। इसलिए कोई मुश्किल भरा यह काम भी नहीं है। आयोग ऐसा कर राजनीतिक दलों और देश की जनता दोनों की मुश्किल को आसान कर देगा। खुद आयोग भी चैन की बंसी बजाता रहेगा। इससे यह पता चल जाएगा कि एक पार्टी में प्रधानमंत्री पद के कितने उम्मीदवार हैं।

आयोग के इस कदम से राजनीतिक दलों का काम आसान हो जाएगा। दूसरी पंक्ति के नेता दलों को मुफ्त में मिल जाएंगे। उन्हें अपने स्तर पर पार्टी के भीतर प्रधानमंत्री खोजने में समय जाया नहीं करना पड़ेगा। इस समय का सदुपयोग वे रणनीति बनाने में करेंगे। देश को कमजोर करने के लिए प्रभावशाली नीतियां बनाएंगे! कुछ तगड़े भाषण तैयार करेंगे। और इसके बाद कुर्सी से चिपक कर अपनी जेब भरने के साथ-साथ चमचों को खुश करने की भी पूरी कोशिश करेंगे। आखिर चुनाव हर दो-चार साल बाद होते ही हैं। ऐसे में भविष्य की संभावनाएं कुंद करना समझदारी नहीं कही जा सकती! अग्र सोची सदा सुखी!

आयोग को इससे काम करने में सहूलियत होगी। वह पार्टियों और उनके नेताओं को नोटिस जारी करने बच जाएगी। नोटिस देना कोई बच्चों का खेल तो हैं नहीं। इसमें खतरा भी है। यदि कभी अपने आका के खिलाफ नोटिस जारी करनी पड़ी तो प्रमोशन में अड़चन आ जाएगी। अगर प्रमोशन नहीं हुआ तो जीवन भर के इंतजार और संघर्ष का बंटाधार हो जाएगा। इससे बचने के लिए कम से कम एक बार तो आयोग को सोचना चाहिए।

यहां एक बात मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मुङो डर नहीं लगता। आयोग क्या मैं किसी से नहीं डरता! बिल्कुल वरुण गांधी की तरह! मैं अब तक सिर्फ दो लोगों से डरता रहा हूं। पहला कॉलेज के दिनों में अपनी गर्लफ्रेंड से और अब अपनी बीवी से! वैसे भी आयोग तो गरजने वाला बादल है। उमड़-घुमड़ कर शोर मचा कर चला जाने वाला। लेकिन हमारे सुझाव पर अगर आयोग अमल करे तो आयोग के साथ करोड़ों लोगों का और भला होगा।

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