Tuesday, May 26, 2009

आईपीएल ने सिखाया है..

आईपीएल-2 के फाइनल में बुड्ढों की टीम विशेषण से नवाजे गए दोनों टीम को देखकर दिल को सुकून पहुंचा। लेकिन जवान और जोशीले खिलाड़ियों की टीम वाले सारे पीछे छूट गए इसका मलाल तो है ही। यह हमारे लिए कई सबक भी छोड़ जाता है। जसे कि कभी निचले पायदान पर रहना पड़े तो उससे निराश होने की जरूरत नहीं है। आखिरकार इस बार का फाइनल खेलनेवाली दोनों टीम पिछले साल नीचे से पहले और दूसरे पायदान पर ही तो थीं।

मैं इससे मिले ज्ञान को अपने तक ही सीमित नहीं रखना चाहता। किसी ने मुङो एक बार बताया था कि यही ऐसी चीज है जो बांटने से बढ़ती है। इसलिए अचानक ही हाथ आए शानदार मौके को यूं ही जाया नहीं होने दूंगा! मैंने तय किया है कि अपने पड़ोसी चुन्नू, मुन्नू और पप्पू को भी थोड़ा ज्ञान दूंगा। इसके अलावा उनके मम्मी-डैडी को भी थोड़ा-थोड़ा ज्ञान दे ही दूं। आखिर फायदा तो मुङो ही होना है! चुन्नू, मुन्नू और पप्पू को मैं बातऊंगा कि यदि एक ही क्लास में कई बार रहना पड़े तो डरने की कोई बात नहीं। तुम सीना फूलाकर रिपोर्ट कार्ड लेकर घर आ सकते हो! मैं उनके माता-पिता को भी उदाहरण देकर समझाने की कोशिश करूंगा कि आईपीएल में खेलनेवाली टीम को देखो! प्रदर्शन में कितना उतार-चढ़ाव रहता है। यदि आज उतार है तो निश्चित ही कल चढ़ाव होगा! मुङो यकीन है कि बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता भी मेरी बात समझ जाएंगे क्योंकि आजकल दोनों ही बड़े समझदार हो गए हैं!

दूसरी सीख टीम के मालिकों के लिए है। टीम के मालिकों को यह बात पूरी तरह समझ में आ जानी चाहिए कि खिलाड़ी चाहे जितने बुड्ढे हों उनके मालिकों और टीम में जोश भरने वाले लोगों को जवान होना चाहिए। फाइनल तक टीम को पहुंचाने के लिए यह बहुत जरूरी है! विश्वास न हो तो फाइनल में पहुंचने वाली टीम के बारे में पता कर लीजिए। जिन्हें विजय माल्या को देखकर भ्रम हो वे अपना भ्रम दूर करने के लिए उनके द्वारा छापे गए कैलेंडरों को देख सकते हैं। माल्या ने अपनी टीम का ब्रांड एम्बेसडर भी सोच-समझ के चुना है। इसका सकारात्मक परिणाम तो उन्हें मिलना ही था!

अंतिम सीख किंग खान और बंगाल टाइगर के लिए है। दोनों को निराश नहीं होना चाहिए। वे पिछले साल की नीचे रही दोनों टीम का कारनामा देख सकते हैं। इस लिहाज से आईपीएल-3 में सबसे मजबूत दावा उन्हीं की टीम का है! लेकिन इसके लिए साल भर इंतजार करना पड़ेगा और इंतजार का फल अक्सर मीठा ही होता है!

1 comment:

  1. सरी सीख टीम के मालिकों के लिए है। टीम के मालिकों को यह बात पूरी तरह समझ में आ जानी चाहिए कि खिलाड़ी चाहे जितने बुड्ढे हों उनके मालिकों और टीम में जोश भरने वाले लोगों को जवान होना चाहिए। फाइनल तक टीम को पहुंचाने के लिए यह बहुत जरूरी है! विश्वास न हो तो फाइनल में पहुंचने वाली टीम के बारे में पता कर लीजिए। जिन्हें विजय माल्या को देखकर भ्रम हो वे अपना भ्रम दूर करने के लिए उनके द्वारा छापे गए कैलेंडरों को देख सकते हैं। माल्या ने अपनी टीम का ब्रांड एम्बेसडर भी सोच-समझ के चुना है। इसका सकारात्मक परिणाम तो उन्हें मिलना ही था!

    Bahut khub

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