Tuesday, July 28, 2009

सच का सामना

बहुत दिनों से मैं कई चीजों का अर्थ जानना चाहता था। कई सवाल मन को परेशान कर रहे थे। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी इनका उत्तर नहीं ढूंढ़ पा रहा था। अपनी इस नाकामी पर मैं अंदर ही अंदर जल रहा था। कई लोगों से पूछा लेकिन सटीक जवाब नहीं मिला। ये सवाल मुङो अब भी परेशान कर रहे हैं। मैं आप लोगों के सामने उनमें से कुछ प्रश्नों को रख रहा हूं, यदि आपके पास इनका जवाब हो तो मेरी परेशानी दूर कर मेरी मदद कर सकते हैं।

मैं होश संभालने के बाद से ही देख रहा हूं कि नेता झक सफेद कुर्ते में लहराते फिरते हैं। ऐसा क्यों? क्या उन्हें दूसरा कोई रंग पसंद नहीं आता या संविधान उन्हें दूसरे रंग के कपड़े पहनने से मना करता है! नेताओं के कपड़े मैले भी नहीं होते। क्या कोई देशी-विदेशी कंपनी खास किस्म की डिटर्जेट बनाती है, जिसका इस्तेमाल सिर्फ नेता ही कर सकते हैं। मुङो इस बात में दम भी नजर आता है क्योंकि वे हेरफेर में माहिर होते हैं। लेकिन मैं पूरी तरह संतुष्ट नहीं हूं।

इसके अलावा एक चुनाव जीतने के बाद नेताओं के हाथ कुबेर का खजाना कैसे हाथ लग जाता है। क्या चुनाव में जीत का मतलब कुबेर से यारी हो जाना है! पांच साल के भीतर उनकी चल-अचल संपत्ति में इतनी बड़ी वृद्धि कैसे हो जाती है। उनके पास बड़ी-बड़ी गाड़ियां और करोड़ों के प्लॉट कहां से टपक पड़ते हैं! नेताओं के खिलाफ चलने वाली जांच भूल-भुलैया की तरह क्यों चलती है। कभी वह अपनी मंजिल तक पहुंचती ही नहीं! अगर इस दिशा में कोशिशें होती हैं तो वे तुरंत अदालत की शरण ले लेते हैं।

दूसरी ओर, नेताओं की गति से आम लोगों की प्रगति क्यों नहीं होती। लोग क्यों कीड़े-मकोड़े की तरह घिसट-घिसट कर अपनी जिंदगी जीते हैं। आम लोगों के घरों में बड़ी-बड़ी गाड़ियां और प्लॉट क्यों नहीं टपकते? क्यों उन्हें टुकड़ों-टुकड़ों में खुशियां मिलती हैं। आखिर नेताओं को तो चुनने का काम जनता ही करती है। फिर क्यों उसके साथ मजाक किया जाता है। चुनाव के बाद लोग जनता को भूल क्यों जाते हैं? मुङो तो लगता है कि शायद सुरक्षा की मांग भी नेता इसीलिए करते हैं कि कहीं जनता उन तक न पहुंच जाए!

नेतागण भले ही सच का सामना में पूछे गए सवालों को गलत बताकर उसकी आलोचना करें लेकिन क्या वे सच का सामना कर पाएंगे?

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