Saturday, September 12, 2009

विविधता का फायदा

भारत विविधताओं से भरा देश है। एकता में अनेकता है। यहां नदी-नाले, पर्वत-पठार, कई तुएं, सूखा और बाढ़, अमीरी-गरीबी का लाजवाब मिश्रण तथा कहना कुछ और दिखाना कुछ जसी कई प्राकृतिक और चमत्कारिक चीजें बड़ी आसानी से मिल जाएंगी! इनमें से कुछ चीजें सुनने और पढ़ने को मिलतीं थीं। अब, ये सब देखने को मिल रहा है। वास्तव में यह विविधताएं किसी अजूबे से कम नहीं हैं। हमारे देश में टाटा-बिड़ला एंड सन्स हैं तो अपना गंगू तेली भी मूक फिल्मों के नायक की तरह अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

इन सबमें एक ऐसा वर्ग भी है, जिसका काम सिर्फ छकर-छकर करना है! चाहे वह जिस तरीके से करे। उसे करने भर से मतलब है! यह वर्ग बातें तो बड़ी-बड़ी करता है लेकिन उसके काम बातों की तुलना में बौने साबित होते हैं। इस वर्ग पर ऊंची दुकान, फीकी पकवान वाली कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है! लेकिन यह वर्ग बड़ा बेशर्म किस्म का है। यह चोरी करता है लेकिन मानता नहीं। यानी चोरी भी और सीनाजोरी भी! उपमा देना शुरू करें तो कहावतों की स्थिति सूखे जसी हो जाएगी और विशेषण का अकाल पड़ जाएगा!

ताजा घटनाक्रम को ही लें। देश के महत्वपूर्ण मंत्रालय के दो मंत्री सूखे और डूबे भारत में सिर्फ रहने पर प्रतिदिन हजारों रुपए खर्च कर रहे थे। उस पर ठसक ये कि पैसे सरकारी नहीं थे। एक ओर लोग सूखे और बाढ़ से परेशान हैं। आज भी कुछ लोगों को दो जून की रोटी नहीं नसीब हो रही है, सिर छुपाने के लिए फूस की छत भी नहीं है। वहीं, जनता के सेवक ऐशो-आराम के जीवन को तरजीह दे रहे हैं। ऐसी विविधता मिल सकती है कहीं!

मंत्रियों का कहना है कि वे निजी खर्च पर होटल में रह रहे थे। यानी पक्के तौर पर इनकी कुबेर जी से यारी थी। तभी इनके पास हजारों रुपए पड़े थे, जिसका सदुपयोग वे कर रहे थे!या फिर हमारे मंत्री जी आयात-निर्यात करने में माहिर हो गए हैं! कई विदेशी दौरों से आखिर कुछ तो सीखना ही था! लेकिन अपनी जनता के बारे में उन्होंने कुछ नहीं सोचा। कुबेर जी से थोड़ी सिफारिश कर देते ताकि इनका भी भला हो जाता! जनता को मंत्री से यह शिकायत तो जरूर होगी।

हम तो खुद को धन्य समझते हैं कि इन विविधताओं के बीच हमने जन्म लिया। हमारे ज्ञान चक्षु खुले और चीजों को जानने समझने में सक्षम हुए। हमें ऐसी विविधता पर गर्व है!

2 comments:

  1. हम तो खुद को धन्य समझते हैं कि इन विविधताओं के बीच हमने जन्म लिया। हमारे ज्ञान चक्षु खुले और चीजों को जानने समझने में सक्षम हुए। हमें ऐसी विविधता पर गर्व है.

    Vyangya dhardhar hai.

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  2. बिलकुल सही कहा. हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक है. तभी तो हमारे नेता भी हमारे साथ कुछ भी करने के लिया स्वतंत्र हैं. हम उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते हैं. उनके पास जो भी है वह उनकी किस्मत से है. जनता भूखी, नंगी, लाचार है वह उसकी किस्मत है.

    नेताओं का तो सिर्फ काम है जनता के ऊपर पंद्रह प्रकार के टैक्स के बाद एक और "वैट" लगा देना. साथ ही भारतीय संस्थाओं के द्वारा किये जाने वाले समाज सेवा को भी "नॉन प्रोफिटेबल व्यवसाय" का दर्जा देना. जबकि विदेशी संस्थाओं के द्वारा यही कार्य करने पर उसे "वैट" से मुक्त कर देना (आखिर उन संस्थाओं के चलानेवालों से उनका वोट बैंक जो सुरक्षित है).

    इससे भी बढ़कर एक्स बात और, जनता बेवकूफ नहीं तो और क्या है जो उम्मीद करती है कि एक पूर्व अभिनेत्री से नेत्री बनीं महोदया बाढ़ की हालत में उनसे मिलने दिल्ली से आयें. अगर वह डूब जाती तो इस देश के क्या होता. आखिर उनकी जान की भी कोई कीमत हैं या नहीं? इतने सारे भाषण देने हैं, कई सारे उदघाटन करने हैं और विदेश दौरे भी तो करने हैं. अगर जनता को थोडी सी परेशानी होती है तो बड़ी बात क्या है? उन्हें तोइसकी आदत लग जानी चाहिए.

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