Tuesday, May 4, 2010

महंगाई भी बहुत मायावी

महंगाई का शोर चारों तरफ है। सड़कों पर महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किए जा रहे हैं तो संसद में इसको लेकर हंगामा है। विपक्ष ने सरकार को महंगाई कम करने के लिए घेरा। जैसे सरकार ने जानबूझकर चीजों का दाम बढ़ा दिया हो और सारे पैसे लेकर वह स्विस बैंकों में डाल देगी। विपक्ष को यह मंजूर नहीं था। वह सरकार को सबक सिखाने के लिए कटौती प्रस्ताव लाई लेकिन उसकी हवा निकल गई। भाजपा को महंगाई के नाम पर दिल्ली की सत्ता गंवाने का दुख अब भी सालता होगा। लेकिन अफसोस कि वह बदला नहीं ले पाई।

कुछ नेता कटौती प्रस्ताव को फालतू की चीज मान रहे थे। उन्हें लग रहा था कि विपक्ष महंगाई के मुद्दे पर बेकार ही संसद का मूल्यवान समय नष्ट कर रहा है। संसद के कीमती वक्त को नष्ट होने से बचाने के लिए इन नेताओं ने महंगाई को कम करने का बेहतरीन नुस्खा अपनाया। उन्होंने कटौती प्रस्ताव को छोड़कर महंगाई के खिलाफ सड़क पर नारेबाजी का विकल्प चुना। नेता जी अपने चेले-चपाटों के साथ आसमान छूती महंगाई के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। चिलचिलाती धूप की तनिक भी परवाह किए बगैर खूब नारे लगाए। जाम लगाया। जिंदगी को एक दिन के लिए रोक दिया। मगर महंगाई का दिल नहीं पसीजा। हालांकि इससे एक बार फिर मगरमच्छ की तरह आंसू बहाने वाले नेता बेनकाब हो गए। हो सकता महंगाई ने ही उनको सबक सिखाने के लिए खुद ही महंगाई सातवें आसमान पर चढ़ गई हो। यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि गुरुजी की कुर्सी खिसकने लगी। गुरुजी से रांची से चले थे 'चीन' लेकिन पहुंच गए 'जापान'! ऐसे में कुर्सी भला उनसे कैसे चिपकी रहती।

महंगाई के बोझ तले दबी जनता के लिए यह अभिशाप ही सिद्ध हुआ। लोग घरों से निकले लेकिन मंजिल तक समय से नहीं पहुंच सके। करते भी क्या महंगाई को कम कराने वालों ने रास्ता जो रोक रखा था। महंगाई से तो लोगों का घर चलाना पहले ही मुश्किल हो रहा था अब घर के बाहर उनका कदम उठाना भी नेताओं ने मुश्किल कर दिया। इससे वे न घर के रहे और न ही घाट के।

इन सारी घटनाओं से समझ लेना चाहिए कि महंगाई का जब मन होगा तब वह नीचे उतर आएगी। हम लाख सिर धुनते रहे यह कम नहीं होगी। नेता तो चाहते ही नहीं कि यह नीचे आए। लेकिन ये भी सच है कि वे चाहे तब भी कुछ होने वाला नहीं! क्योंकि महंगाई अब तक उनके चेले-चपाटों में शामिल नहीं हो पाई है!

2 comments:

  1. mayavi . lilavi , ya pastavi , jeso se hi to badti he

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  2. किसी दार्शनिक ने कभी लोकतंत्र को भीड़तंत्र कहकर इस व्यवस्था की मजाक उड़ाई थी। तब उसकी काफी आलोचना हुई थी, लेकिन अपने देश के महान लोकतंत्र में जो कुछ हो रहा है, उससे भीड़तंत्र वाली बात तर्कसंगत प्रतीत होती है। लेकिन दोष व्यवस्था का भी नहीं है। भाई बेईमान जतना के नेता ईमानदार कैसे हो सकते हैं। महंगाई बेहुदी आर्थिक नीतियों का नतीजा है, जिसे न तो समझना आसान है और न ही इसका निराकरण सरल है। Bhim

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