मन्नू ने जब पहली दफा कॉलेज में कदम रखा तो उसे अपने चारों ओर का माहौल बड़ा ही खुशगवार लगा। कैंपस की चमक-दमक ने सीधे-सादे मन्नू को करीब-करीब बेसुध कर दिया था। इतने रंग एक साथ उसने इससे पहले कभी नहीं देखे थे। उसने पहली बार महसूस किया कि वह अब तक कुएं की मेढक की तरह था। उसने बाहर की दुनिया देखकर राहत की सांस ली।
हालांकि हमारे समय में कॉलेज में पहुंचने से पहले तक बहुत कम लोग ही कुछ महसूस करने लायक होते थे। लेकिन आजकल तो नर्सरी के बाद ही अधिकांश को कुछ न कुछ होने लगता है। और तो और वे महसूस करने में बहुत आगे निकल चुके हैं! इस मामले में अब तो रोज ही रिकॉर्ड बनते और टूटते हैं, जिसे संग्रह करके रखना लोहे के चने चबाने से तनिक भी कम नहीं! अपना मन्नू तो नर्सरी क्लास वालों से भी पीछे था। लेकिन उसे कॉलेज में पहुंचने तक इस बात का अहसास तक नहीं था।
मन्नू अपने आसपास की हलचल से रोमांचित था। लेकिन हलचल के बनावटीपन से व्यथित भी। वह भी हलचल का हिस्सा बनना चाहता था। इसके लिए उसने हाथ-पांव मारे। डरते-डरते ही सही। गलत-सही सभी जगहों पर! कैंपस के बाहर मैक डी और बरिस्ता से लेकर कैफे कॉफी डे तक। सभी जगह चेहरे पर मुस्कान लिए, बोझिल मन से उसने शीश झुकाया। लेकिन ये काफी नहीं था शायद!
मन्नू वास्तविकता छिपाने में कामयाब नहीं हो सका या किसी घाघ से मात खा गया! इस उधेड़बुन में वह आज भी है! लेकिन इसका परिणाम हुआ कि वह बहुत देर तक रेस में खुद को शामिल नहीं रख सका। इसके अलावा भी रेस में बने रहने के लिए ढेर सारी कुर्बानी देने को वह तैयार नहीं था। क्योंकि उसे डर था कि रेस का विजेता बनने के बाद भी आकाश की ऊंचाई नहीं बदले में उसे खाई ही मिलेगी! सारे प्रकरण से मन्नू को जो अनुभव मिला वह बेशकीमती था। वह इसे महसूस भी करता था। अब वह चेहरे की सेल्स गर्ल वाली मुस्कान को भांप कर सतर्क हो जाता! यही हंसी कभी आग भड़काने का काम करती थी।
मन्नू ने कॉलेज में जाने पर पहली बार जो महसूस किया वह आजकल के तय मानकों से काफी नीचे की चीज थी। बिल्कुल स्तरहीन! लेकिन इसमें उस बेचारे का कोई दोष नहीं था। यह तो उसका स्वभाव था। पूरी तरह शुद्ध! टीवी पर दिखाए जाने वाले किसी ब्रांडेड नमक के विज्ञापन की तरह! शायद यही कारण था कि उसका शुद्ध खारापन किसी को आकर्षित नहीं कर पाया। लेकिन सच यही है कि नमक के बिना किसी भी विधि से पकाया व्यंजन फीका ही रहता है!
अखिलेश घर-चौबारे से बाहर की आबो-हवा, कड़वे अनुभव, घाघपन से साक्षात्कार, एक-दूसरे से आगे निकल जाने की महत्वाकांक्षा और इस दौड़ में पिछे रह जाने का मलाल, ये सभी इंसान को संपूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करने के लिए जरूरी तत्व हैं। रही बात मन्नू की तो हमारे देश में ऐसे लोग अब कम ही हैं। भोलापन अपनेआप में खास आकर्षण रखता है और इससे होने वाले नुकसान की चिंता करना बेवकु$फी है, क्योंकि दरिया में मिल जाने के बाद नदी नदी नहीं रह जाती। उसकी अपनी पहचान कहीं खो जाती है। इसलिए किसी भी कीमत पर यदि अपनी पहनचान बनी रहे, तो यह भी एक उपलब्धि मानी जाएगी। मैं समझता हूं मन्नु ने बड़ी परिपक्वता दिखाई है और उसकी इस उपलब्धि के लिए बधाई। भीम
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