Thursday, June 24, 2010

'खेल-प्रेमी' की दुविधा

खेलों के दीवाने मेरे एक मित्र आजकल बड़ी परेशानी में हैं। हालांकि उन्हें खेलों का दीवाना कहने की बजाय क्रिकेट का दीवाना कहना उचित होगा। क्योंकि वे क्रिकेट छोड़कर अन्य कोई खेल में रुचि में नहीं रखते। लेकिन उन्हें 'खेल-प्रेमी' ही कहलाना पसंद है! उनकी परेशानी का कारण क्रिकेट की खबरों का टीवी और अखबार से गायब हो जाना है। क्रिकेट की जगह फुटबॉल ने ले ली है। उन्हें क्रिकेट की खबरें इन दिनों खेल के पन्नों पर हमेशा की तरह पढ़ने को नहीं मिल पा रही हैं। चार-पांच पन्नों तक फैली खेल की खबरों में क्रिकेट की खबर कहीं कोने में दुबकी हुई पड़ी मिलती है। जसे बिल्ली से जान बचाकर भागा, डरा हुआ कोई चूहा!

मेरे मित्र को इसका कारण समझ में नहीं आ रहा था। कई तरह की बातें उनके अंदर खलबली मचा रही थीं। उन्होंने अपने तर्क प्रस्तुत किए- क्रिकेट का एशिया कप चल रहा है। उसमें भारत की क्रिकेट टीम भी हिस्सा ले रही है। फुटबॉल वर्ल्ड कप में तो हमारी टीम भी नहीं है। एशिया कप में हमारी टीम ने पाकिस्तान को धूल भी चटा दिया। हम फाइनल में भी पहुंच गए हैं। एशिया कप में जिम्बाब्वे भेजी गई दोयम दज्रे की टीम भी नहीं है। फिर भी अपने यहां क्रिकेट की खबरों का ये हश्र! खबरें पन्ने की पेंदी में चिपकी हुई हैं! ये सब कहते-कहते वे तैश में आग गए। मैंने अनुमान लगाया कि इस दौरान उनका बीपी जरूर बढ़ गया होगा! मित्र ने कहा-ये तो खेल के साथ सरासर अन्याय है। क्रिकेट, क्रिकेटर और क्रिकेट प्रेमियों का अपमान है! उनके तमतमाए हुए चेहरे को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि देश में एक और गदर बस होने ही वाला है! खेलों के इतिहास का पहला गदर!

मित्र के सामने मैंने एक गिलास ठंडा पानी रख दिया। उन्होंने गिलास को लपक लिया। मेरे मित्र ने ब्रेक के बाद भी अपनी बातें जारी रखीं। उन्होंने आशंका जतायी कि कहीं ‘क्रिकेट के भगवान' के टीम में न रहने से ऐसा तो नहीं! वे डर गए कि टीम में ‘क्रिकेट के भगवान' के न रहने से ये हो सकता है तो उनके संन्यास के बाद क्या होगा! उनके लिए यह अकल्पनीय था!

मैंने उन्हें समझाया कि हौसला बनाए रखिए। आप ये भी तो देखें क्रिकेट की गेंद, फुटबॉल से कितनी छोटी है। आपके क्रिकेट में एक ही भगवान हैं, जबकि फुटबॉल की दुनिया में अनेक भगवान हैं! साथ ही फुटबॉल के मैदान में वुवुजेला जसा अनोखा वाद्य यंत्र है और आकर्षक सुंदरियों की भी कमी नहीं है। क्रिकेट को छोड़ फुटबॉल के साथ-साथ इन सबका मजा लीजिए, बस!

1 comment:

  1. भाई अखिलेश तुम ए आर रहमान के दीवाने को गुलजार और ओपी नय्यर के साथ हो लेने को कह रहे हो। पेप्सी पीने वालों को लस्सी की आदत डालने के लिए कह रहे हो। तुम्हारे भेजे में दीमक लग गई है क्या। मुझे तुम्हारी समझ पर तरस आ रहा है। कहां आर्टिफिशियल क्रिकेट और कहां कुदरती फुटबॉल- तुम इन दोनों की तुलना करके क्रिकेट का कद ऊंचा कर रहे हो या फिर फुटबॉल का स्तर गिरा रहे हो, यह शोध का रोचक विषय हो सकता है। रही बात विभिन्न खेलों के भगवान और गेंद के छोटा-बड़ा होने की बात तो बाजार के इस दौर में सब कुछ प्रबंधन की दक्षता पर निर्भर करता है, अपने-आप में इन चीजों की कोई अहमियत नहीं होती। भरोसा न हो तो ललित मोदी को फीफा का अध्यक्ष बनवा दो, वह क्रिकेट के गेंद से फुटबॉल का आयोजन कराने से बाज नहीं आएगा और बेचारे सचिन को डिफेंडर बनने पर मजबूर कर देगा। वाकई तुमने खेलों की दुनिया और उसके प्रशंसकों की भद पिटवाई है। भीम

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